शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

चित्तौड़गढ़ मंदिर सूची

 चित्तौड़गढ़ को "मेवाड़ की शान" और "बलिदानों की भूमि" कहा जाता है। यह सिर्फ अपने किले, युद्धों और वीरता की कहानियों के लिए ही नहीं, बल्कि यहाँ स्थित प्राचीन और अद्भुत मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर वास्तुकला, धार्मिक महत्व और इतिहास का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करते हैं।https://www.youtube.com/@mythfab1662

चित्तौड़गढ़ के मंदिरों की सूची

चित्तौड़गढ़ किले के अंदर स्थित मंदिर:

  1. कालिका माता मंदिर

  2. मीरा बाई का मंदिर (कृष्ण मंदिर)

  3. समिद्धेश्वर महादेव मंदिर (स्वर्ण मंदिर)

  4. तुलजा भवानी मंदिर

  5. खेत्रपाल महादेव मंदिर

  6. नीलकंठ महादेव जैन मंदिर

  7. श्रिंगार चौरी जैन मंदिर

  8. सतबीस देवरी जैन मंदिर

  9. गोमुख महादेव मंदिर (गोमुख कुंड के पास)

  10. सावलिया मंदिर, चित्तौड़गढ़

चित्तौड़गढ़ शहर में स्थित मंदिर:

  1. माता सती का मंदिर (सती विलास)

  2. राणा कुम्भा का मंदिर (बासी की बावड़ी के पास)

  3. जानकी मंदिर

  4. गंगौर माता मंदिर

  5. श्री रंगनाथजी मंदिर

आस-पास के प्रसिद्ध मंदिर:

  1. संत रविदास मंदिर (बड़ोली)

  2. मेनाल के प्राचीन मंदिर (चित्तौड़गढ़ से लगभग 90 किमी दूर)

  3. देव श्री कल्लाजी महाराज का मंदिर (मंडफिया)


चित्तौड़गढ़ किले के प्रमुख मंदिर

चित्तौड़गढ़ की पहचान यहाँ के विशाल किले से है, और इस किले के अंदर कई ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं।

1. कालिका माता मंदिर

  • इतिहास और महत्व: यह मंदिर चित्तौड़गढ़ किले का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण मंदिर है। मूल रूप से यह 8वीं शताब्दी में सूर्य देव (सूर्य मंदिर) के लिए बनाया गया था। 14वीं शताब्दी में महाराणा हम्मीर सिंह ने इसे कालिका माता (माँ दुर्गा का एक रूप) के मंदिर में परिवर्तित कर दिया। मान्यता है कि कालिका माता मेवाड़ राजवंश की इष्ट देवी हैं और उनकी कृपा से ही मेवाड़ ने कई युद्ध जीते।

  • वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। इसके स्तंभों पर बारीक नक्काशी की गई है। मंदिर का शिखर और मंडप प्राचीन हिंदू मंदिर स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

2. मीरा बाई का मंदिर (कृष्ण मंदिर)

  • इतिहास और महत्व: यह मंदिर भक्ति आंदोलन की प्रसिद्ध संत-कवयित्री मीराबाई से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि मीराबाई यहाँ अपने इष्ट देव श्री कृष्ण की पूजा-आराधना किया करती थीं। यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है और मीरा की भक्ति की याद दिलाता है।

  • विशेषता: मंदिर अपेक्षाकृत साधारण है, लेकिन इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। यहाँ आकर भक्त मीरा की दिव्य भक्ति की अनुभूति करते हैं।

3. समिद्धेश्वर महादेव मंदिर

  • इतिहास और महत्व: यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसके शिखर पर सोने की परत चढ़ी हुई है, इसलिए इसे "स्वर्ण मंदिर" भी कहा जाता है। इसका जीर्णोद्धार महाराणा फतेह सिंह ने करवाया था।

  • विशेषता: मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर देवी-देवताओं, अप्सराओं और पौराणिक कथाओं related to intricate carvings are visible. महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशेष उत्सव मनाया जाता है।

4. तुलजा भवानी मंदिर

  • इतिहास और महत्व: यह मंदिर देवी तुलजा भवानी (माँ दुर्गा का एक रूप) को समर्पित है। मान्यता है कि महाराणा प्रताप की तलवार इसी देवी ने आशीर्वाद स्वरूप दी थी। यह मंदिर राजपूत शूरवीरों की आराध्य देवी के रूप में प्रसिद्ध है।

  • विशेषता: मंदिर किले के अंदर एक शांत स्थान पर स्थित है।

5. जैन मंदिर (कुम्भश्याम मंदिर के निकट)

  • इतिहास और महत्व: चित्तौड़गढ़ किले में कई प्राचीन जैन मंदिर भी हैं जो 8वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बनवाए गए थे। ये मंदिर जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं।

  • वास्तुकला: इन मंदिरों की वास्तुकला अत्यंत भव्य और सुंदर है। खासतौर पर नीलकंठ महादेव जैन मंदिर और श्रिंगार चौरी मंदिर प्रसिद्ध हैं। इनमें सफेद संगमरमर पर बेहतरीन नक्काशी देखने को मिलती है।


चित्तौड़गढ़ शहर के प्रमुख मंदिर

किले के बाहर भी चित्तौड़गढ़ शहर में कई महत्वपूर्ण मंदिर स्थित हैं।

1. माता सती का मंदिर (सती विलास)

  • महत्व: यह मंदिर चित्तौड़गढ़ शहर के बीचों-बीच स्थित है और यहाँ सती माता की प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर शहर के लोगों की गहरी आस्था का केंद्र है।

  • विशेषता: मंदिर परिसर काफी विशाल है और यहाँ हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि यहाँ मन्नत मांगने पर वह जरूर पूरी होती है।

2. बASSी की बावड़ी और राणा कुम्भा का मंदिर

  • महत्व: बASSी की बावड़ी एक प्राचीन सीढ़ीदार कुआं है जिसके ठीक सामने महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया एक छोटा सा मंदिर है। यह स्थान पानी की सुविधा और धार्मिक स्थल दोनों का काम करता था।

  • विशेषता: इसकी वास्तुकला देखने लायक है।

3. गौमुख कुंड और मंदिर

  • महत्व: यह एक प्राकृतिक जल स्रोत है जो एक गाय की मुखाकृति से निरंतर पानी गिरता रहता है, इसलिए इसे गौमुख कुंड कहते हैं। इस कुंड के ऊपर एक छोटा मंदिर बना हुआ है।

  • विशेषता: यह स्थान किले के नीचे स्थित है और यहाँ का वातावरण बहुत शांत और आनंददायक है। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड का पानी पवित्र है।

यात्रा के लिए महत्वपूर्ण जानकारी

  • सबसे अच्छा समय: चित्तौड़गढ़ घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का है जब मौसम सुहावना रहता है। गर्मियों में यहाँ का तापमान बहुत अधिक होता है।

  • कैसे पहुँचें:

    • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर (लगभग 90 किमी) है।

    • रेल मार्ग: चित्तौड़गढ़ का अपना रेलवे स्टेशन है जो देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

    • सड़क मार्ग: चित्तौड़गढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग 48 से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। उदयपुर, अजमेर, कोटा आदि शहरों से बसें उपलब्ध हैं।

  • ध्यान रखें: किले तक जाने के लिए टैक्सी या ऑटो रिक्शा लेना पड़ता है। किला बहुत विशाल है, इसलिए घूमने के लिए पर्याप्त समय और आरामदायक जूते रखें।

निष्कर्ष:
चित्तौड़गढ़ सिर्फ एक ऐतिहासिक शहर नहीं, बल्कि एक पवित्र तीर्थस्थल भी है। यहाँ के मंदिर न सिर्फ आस्था के केंद्र हैं, बल्कि प्राचीन भारतीय कला, संस्कृति और इतिहास के जीवंत दस्तावेज भी हैं। यह स्थान वीरता और भक्ति का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।

सावलिया मंदिर, चित्तौड़गढ़: एक संपूर्ण परिचय



सावलिया मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर अपने अद्भुत शिल्प और भगवान कृष्ण के独特 रूप के लिए पूरे राजस्थान में जाना जाता है।


1. मंदिर का स्थान और नामकरण (Location & Naming)

  • स्थान: यह मंदिर चित्तौड़गढ़ शहर से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और प्रतापगढ़ जिले की सीमा के निकट है। यह एक छोटे से गाँव, सावलिया (Sawaliya) में स्थित है, जिसके नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा।

  • नाम का अर्थ: "सावलिया" शब्द का स्थानीय भाषा में एक विशेष अर्थ है। भगवान कृष्ण का यहाँ का स्वरूप श्याम वर्ण (सांवला रंग) का है, इसीलिए इन्हें "श्री सावलिया जी" या "श्री सावलिया धाम" के नाम से पुकारा जाता है।


2. देवता और धार्मिक महत्व (Deity & Religious Significance)

  • मुख्य देवता: इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान श्री कृष्ण हैं, जिनकी यहाँ बाल गोपाल के रूप में पूजा की जाती है। यहाँ स्थापित मूर्ति भगवान कृष्ण की एक अत्यंत सुंदर, काले पत्थर से निर्मित प्रतिमा है।

  • महत्व: इस मंदिर को "राजस्थान का द्वारका" भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं के दर्शन का पुण्य मिलता है।


3. मंदिर की वास्तुकला और संरचना (Architecture & Structure)

  • शैली: यह मंदिर प्राचीन हिंदू मंदिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसके निर्माण में नागर शैली की झलक साफ देखी जा सकती है।

  • मुख्य आकर्षण:

    • गर्भगृह (Sanctum Sanctorum): गर्भगृह में भगवान सावलिया जी (बाल कृष्ण) की सुंदर मूर्ति स्थापित है।

    • शिखर (Spire): मंदिर का मुख्य शिखर बहुत ऊँचा और भव्य है, जो दूर से ही दिखाई देता है। इस पर सुंदर नक्काशी की गई है।

    • सभा मंडप (Assembly Hall): गर्भगृह के सामने एक विशाल सभा मंडप है, जहाँ भक्त एक साथ बैठकर प्रार्थना कर सकते हैं।

    • स्तंभ (Pillars): मंडप के स्तंभों पर देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और floral patterns related to intricate carvings are visible.


4. इतिहास और निर्माण (History & Construction)

माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 10वीं-11वीं शताब्दी के आस-पास हुआ था। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, मेवाड़ के एक राजा ने स्वप्न में भगवान कृष्ण का आदेश पाकर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर का वर्तमान स्वरूप समय-समय पर हुए जीर्णोद्धार का परिणाम है।


5. दर्शन का समय और विशेष त्योहार (Visiting Hours & Festivals)

  • दर्शन का समय: मंदिर सुबह लगभग 5:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम को 4:00 बजे से 9:00 बजे तक खुला रहता है। (समय में मौसम के अनुसार बदलाव हो सकता है)

  • प्रमुख त्योहार:

    • जन्माष्टमी: यहाँ का सबसे बड़ा और धूम-धाम से मनाया जाने वाला त्योहार है। इस दिन हज़ारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

    • होली: भगवान कृष्ण का प्रिय त्योहार होली भी यहाँ बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है।


6. कैसे पहुँचें? (How to Reach?)

  • सड़क मार्ग: चित्तौड़गढ़ से सावलिया जाने के लिए बसें और निजी टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। यह सफर लगभग 2-2.5 घंटे का है।

  • रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ ही है।

  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर में है।

निष्कर्ष:
श्री सावलिया जी मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और वास्तुकला का एक जीवंत उदाहरण भी है। यह स्थान भक्ति और कला का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है और हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

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